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सॉफ्टवेयर (Software) की परिभाषा (how many types of software in computer)

सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों, नियम व क्रियाओं का वह समूह है जो कम्प्यूटर सिस्टम के कार्यों को नियंत्रित करता है तथा कम्प्यूटर के विभिन्न हार्डवेयर के बीच समन्वय स्थापित करता है, ताकि किसी विशेष कार्य को पूरा किया जा सके। इस तरह, सॉफ्टवेयर वह निर्देश है जो हार्डवेयर से निर्धारित कार्य कराने के लिए उसे दिए जाते हैं। साफ्टवेयर हार्डवेयर को यह बताता है कि उसे क्या करना है, कब करना है और कैसे करना है। साफ्टवेयर कम्प्यूटर का वह भाग है जिसे हम छू नहीं सकते। अगर हार्डवेयर इंजन है तो साफ्टवेयर उसका ईंधन साधारणतः प्रोग्राम (Program), अप्लिकेशन (Application) और साफ्टवेयर (Software) एक ही चीज को इंगित करते हैं।

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प्रोग्राम (Program): किसी निश्चित कार्य को पूरा करने के लिए तैयार किया गया अनुदेशों का समूह प्रोग्राम कहलाता है।

प्रोग्रामर (Programmer): यह कम्प्यूटर साफ्टवेयर का Expert होता है जो किसी कार्य को पूरा करने के लिए। साफ्टवेयर code या program Ready करता है, उसकी (Testing) करता है तथा उसकी खामियों (Bugs) की observe कर उसमें सुधार (Debugging) करता है। कम्प्यूटर प्रोग्रामर प्रोग्राम के क्रियान्वयन के दौरान आने वाली सभी संभावनाओं पर विचार करता है।

एक्जीक्यूटेबल प्रोग्राम (Executable Program) : वह साफ्टवेयर प्रोग्राम जिसे कम्प्यूटर प्रोसेसर क्रियान्वित कर सकता है, तथा वांछित परिणाम देता है, Executable Program कहलाता है। इस प्रोग्राम फाइल का एक्सटेंशन नेम .exe होता है।

जब (Hardware) किसी कार्य को पूरा करने के लिये Software Program के Instruction का पालन करता है तो इसे प्रोग्राम को run या execute करना कहा जाता है।

साफ्टवेयर के प्रकार (Types of Software)

साफ्टवेयर को  तीन भागों में बांटा जाता  है—

  • 1. सिस्टम साफ्टवेयर (System Software)
  • 2. एप्लिकेशन साफ्टवेयर (Application Software)
  • 3. यूटीलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software)

 सिस्टम साफ्टवेयर (System Software)

प्रोग्रामों का समूह जो कम्प्यूटर सिस्टम के मूलभूत कार्यों को संपन्न करने तथा उन्हें कार्य के लायक बनाए रखने के लिए तैयार किए जाते हैं, सिस्टम सॉफ्टवेयर कहलाते हैं। यह कम्प्यूटर तथा उपयोगकर्ता के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर के बिना कम्प्यूटर एक बेजान मशीन भर ही रह जाता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर एक तरफ तो कम्प्यूटर हार्डवेयर से जुड़ा होता है तो दूसरी तरफ अप्लिकेशन साफ्टवेयर से सिस्टम साफ्टवेयर अप्लिकेशन साफ्टवेयर के लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है। कोई भी अप्लिकेशन साफ्टवेयर सिस्टम साफ्टवेयर को ध्यान में रखकर ही तैयार किया जाता है।

सिस्टम साफ्टवेयर के प्रकार  हैं-

 (DOS), (Windows), (Unix), (Macintosh) आदि। System Software को 2 दो भागों में बांटा जाता है-

1. आपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर (Operating System Software)

2. लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर (Language Translator Software)

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) :

ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोग्रामों का वह समूह है जो कम्प्यूटर सिस्टम तथा उसके विभिन्न संसाधनों के कार्यों को नियंत्रित करता है तथा हार्डवेयर, Application तथा User के बीच Relation स्थापित करता है। यह Different Application Program के बीच तालमेल भी स्थापित करता है। Without Operating System Hardware किसी Application Program को Control नहीं कर सकता। अधिकांश Operating के साथ  Application Software जैसे— Web Browser, Video Player, Calculator आदि पहले से ही बने होते हैं।

आपरेटिंग सिस्टम के मुख्य कार्य हैं-

(a) कम्प्यूटर चालू किये जाने पर सॉफ्टवेयर को द्वितीयक मेमोरी से लेकर प्राथमिक मेमोरी में डालना तथा कुछ मूलभूत क्रियाएं स्वतः प्रारंभ करना।

(b) Hardware और Users के बीच संबंध स्थापित करना।

(c) हार्डवयर संसाधनों का नियंत्रण तथा बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना।

(d) अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर के क्रियान्वयन के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना।

(c) मेमोरी और फाइल प्रबंधन करना तथा मेमोरी और स्टोरेज डिस्क के बीच डाटा का आदान-प्रदान करना।

(1) हार्डवेयर व साफ्टवेयर से संबंधित कम्प्यूटर के विभिन्न दोषों (errors) को इंगित करना।

(g) कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर तथा डाटा को अवैध प्रयोग से सुरक्षित रखना तथा इसकी चेतावनी (Warning) देना।

कुछ प्रमुख आपरेटिंग सिस्टम के उदाहरण हैं-

माइक्रोसाफ्ट डॉस (MS DOS), Apple Mac OS , माइक्रोसाफ्ट विण्डोज- Windows 95, 98, 2000, एमई (ME-Millennium), एक्स. पी. (XP). Windows Vista, Windows 7, Windows 10,Unix, Linux, Xenix, Google Chrome OS, Android OS (मोबाइल फोन के लिए)

रोचक तथ्य:- लिनक्स (Linux) Windows के समान एक Powerful Operating System है जो Free में  उपलब्ध है जबकि Windows के लिए pay करना  पड़ता है। इसके बावजूद लिनक्स का प्रचलन सीमित है।

आपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)

 (I) बैच प्रोसेसिंग आपरेटिंग सिस्टम (Batch Processing Operating System) इसमें एक जैसे कार्यों को एक batch के रूप में इकठा कर Group  में क्रियान्वित किया जाता है। इसके लिए बैच Monitor Software का प्रयोग किया जाता है। इस System का लाभ यह है कि Program के क्रियान्वयन के लिए Computer के सभी Recourses उपलब्ध रहते हैं, अतः समय Manage करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु, इसमें उपयोगकर्ता तथा प्रोग्राम के बीच क्रियान्वयन के दौरान कोई अंतर्संबंध नहीं रहता तथा परिणाम प्राप्त करने में समय अधिक लगता है। मध्यवर्ती परिणामों पर उपयोगकर्ता का कोई नियंत्रण नहीं रहता।

उपयोग: इस सिस्टम का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिए किया जाता है जिसमें मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती। जैस विश्लेषण (Statistical Analysis), विलप्रिंट पेरोल (Payroll) बनाना आदि।

(ii) मल्टी प्रोग्रामिंग आपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System) इस प्रकार के आपोर्टिंग सिस्टम में एक साथ कई कार्यों को सम्पादित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, किसी एक प्रोग्राम के क्रियान्वयन के बाद जब उसका प्रिंट लिया जा रहा होता है तो प्रोसेसर खाली बैठने के पर दूसरे प्रोग्राम का क्रियान्वयन आरंभ कर देता है जिसमें प्रिंटर की न आवश्यकता नहीं होती। इससे क्रियान्वयन में लगने वाला कुल स कम हो जाता है तथा संसाधनों का बेहतर उपयोग भी संभव हो पाता है।

मल्टीप्रोग्रामिंग आपरेटिंग सिस्टम में प्रोसेसर कई प्रोग्रामों की साथ क्रियान्वित नहीं करता, बल्कि एक समय में एक ही निर्देश को संपादित करता है। एक निर्देश संपादित होने के बाद ही मेन मेमोरी में स्थित दूसरे कार्य के निर्देश को संपादित किया जाता है। एक इसके लिए विशेष हार्डवेयर व साफ्टवेयर की आवश्यकता होती है। इसमें कम्प्यूटर की मुख्य मेमोरी का आकार बड़ा होना चाहिए ताकि मुख्य मेमोरी का कुछ हिस्सा प्रत्येक प्रोग्राम के लिए आवंटित किया जा सके। इसमें प्रोग्राम क्रियान्वयन का क्रम तदा वरीयता निर्धारित करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

क्या आप जानते हैं ?

आधुनिक Computer में मुख्यतौर पर Multi Programming Operating System का प्रयोग किया जाता है (Windows) और लिनक्स (Linux) Multi Programming Operating System है जिनके एक साथ कई प्रोग्राम एक साथ चलाये जा सकते हैं।

 (iii) टाइम शेयरिंग आपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System) : इस आपरेटिंग सिस्टम में एक साथ कई उपयोगकर्ता जिन्हें टर्मिनल (Terminal) भी कहते हैं; इंटरएक्टिव मोड़ में कार्य करते हैं जिसमें Program के क्रियान्वयन के बाद प्राप्त Result को तुरंत दर्शाया जाता है। प्रत्येक User को Resources के एक साथ उपयोग के लिए कुछ समय दिया जाता है जिसे टाइम स्लाइस (Time Slice) या क्वांटम कहते हैं।

इनपुट देने और आउटपुट प्राप्त करने के बीच के समय को टर्न अरांउड समय (Turn Around Time) कहा जाता है। इस समय का उपयोग कम्प्यूटर द्वारा अन्य उपयोगकर्ता के प्रोग्रामों के क्रियान्वयन में किया जाता है।

इस आपरेटिंग सिस्टम में मेमोरी का सही प्रबंधन आवश्यक होता है क्योंकि कई प्रोग्राम एक साथ मुख्य मेमोरी में उपस्थित होते. हैं। इस व्यवस्था में पूरे प्रोग्रामों को मुख्य मेमोरी में न रखकर प्रोग्राम क्रियान्वयन के लिए आवश्यक हिस्सा ही मुख्य मेमोरी में लाया जाता है। इस प्रक्रिया को स्वैपिंग (Swapping) कहते हैं।

 (iv) रीयल टाइम सिस्टम (Real Time System): इस आपरेटिंग सिस्टम में निर्धारित समय सीमा में परिणाम देने को महत्व दिया जाता है। इसमें एक प्रोग्राम के परिणाम का दूसरे प्रोग्राम में इनपुट डाटा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। पहले प्रोग्राम के क्रियान्वयन में देरी से दूसरे प्रोग्राम का क्रियान्वयन और परिणाम रुक सि सकता है। अतः इस व्यवस्था में प्रोग्राम के क्रियान्वयन समय (Response time) को तीव्र रखा जाता है। इस आपरेटिंग सिस्टम का उपयोग उपग्रहों के संचालन, हवाई जहाज के नियंत्रण, परमाणु भट्टियों, वैज्ञानिक अनुसंधान, रक्षा, चिकित्सा, रेलवे आरक्षण आदि में किया जाता है लिनक्स (Linux) नि आपरेटिंग सिस्टम रीयल टाइम आपरेटिंग सिस्टम का उदाहरण है।

(v) एकल आपरेटिंग सिस्टम (Single Operating System): पर्सनल कम्प्यूटर के विकास के साथ एकल आपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता महसूस की गई जिसमें प्रोग्राम क्रियान्वयन की समय सो सीमा या संसाधनों के बेहतर उपयोग को वरीयता न देकर प्रोग्राम की सो सरलता तथा उपयोगकर्ता को अधिक से अधिक सुविधा प्रदान करने पर जोर दिया गया। एमएस डॉस (MS DOS Microsoft Disk Operating System) एकल आपरेटिंग सिस्टम का उदाहरण है।

एकल मल्टी टास्किंग आपरेटिंग सिस्टम (Single User Multi-Tasking Operating System) : इस प्रकार के सिस्टम में प्रोसेसर द्वारा एक साथ कई कार्य संपादित किए जाते हैं। इसमें प्रोसेसर अपना कुछ समय सभी चालू प्रोग्राम को देता है तथा सभी प्रोग्राम साथ-साथ संपादित होते हैं। इसमें अलग-अलग कार्यों की प्रगति का विवरण भी स्क्रीन पर देखा जा सकता है। यह टाइम शेयरिंग साफ्टवेयर का ही एक प्रकार है। माइक्रोसाफ्ट विंडोज (Microsoft Windows) सिंगल यूजर मल्टी टास्किंग साफ्टवेयर का उदाहरण है।

मल्टी प्रोसेसिंग सिस्टम (Multi-Processing System) : इसमें एक साथ दो या अधिक प्रोसेसर को आपस में जोड़कर उनका उपयोग किया जाता है। इससे कार्य संपादित करने की गति में वृद्धि होती है। इसमें एक साथ दो अलग-अलग प्रोग्राम या एक ही प्रोग्राम के भाग क्रियान्वित किया जा सकता है। इसे पैरालेल प्रोसेसिंग (Parallel Processing) भी कहा जाता है।

 (vi) मल्टी यूजर आपरेटिंग सिस्टम (Multi User Operating System) : इस आपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग नेटवर्क से जुड़े कम्प्यूटर सिस्टम में किया जाता है। इसमें कई उपयोगकर्ता एक ही समय में कम्प्यूटर पर स्थित एक ही डाटा का उपयोग तथा उसका प्रोसेस कर सकते हैं। Unix, Linux, Window-7 आदि मल्टी यूजर आपरेटिंग सिस्टम के उदाहरण हैं।

 (vii) इम्बेडेड आपरेटिंग सिस्टम (Embedded Operating System) किसी उपकरण के भीतर स्थित प्रोसेसर के प्रयोग के लिए बना आपरेटिंग साफ्टवेयर इम्बेडेड आपरेटिंग सिस्टम कहलाता है। यह साफ्टवेयर प्रोसेसर के भीतर ही रॉम (ROM) में स्टोर किया जाता है। माइक्रोवेव वाशिंग मशीन, डीवीडी प्लेयर, इलेक्ट्रॉनिक घड़ी आदि में इसका प्रयोग किया जाता है।

(viii) ओपन / क्लोज्ड सोर्स आपरेटिंग सिस्टम (Open/ Closed Source Operating System): ओपेन सोर्स आपरेटिंग सिस्टम में सॉफ्टवेयर का केरनेल (Kernel) या सोर्स कोड (Source Code) सबके लिए उपलब्ध होता है और कोई भी अपनी आवश्यकतानुसार इसमें परिवर्तन कर उसका उपयोग कर सकता है। इस आपरेटिंग सिस्टम पर किसी का अधिकार नहीं होता और न ही उपयोगकर्ता द्वारा कोई शुल्क चुकाना पड़ता है।

क्लोज्ड सोर्स आपरेटिंग सिस्टम में उसका सोर्स कोड गुप्त रखा जाता है तथा उपयोगकर्ता निर्धारित शुल्क चुकाकर ही इस साफ्टवेयर का उपयोग कर सकता है। Linux एक ओपेन सोर्स आपरेटिंग सिस्टम है जबकि Windows माइक्रोसाफ्ट कम्पनी का क्लोज्ड सोर्स आपरेटिंग सिस्टम है। मोबाइल टेलीफोन में प्रयुक्त Google का Android OS ओपन – सोर्स सॉफ्टवेयर है जबकि Apple का iPhone OS एक क्लोज्ड सोर्स आपरेटिंग सिस्टम है।

लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर (Language Translator Software): कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रानिक मशीन है जो केवल बाइनरी अंकों (0 तथा 1 या ऑफ तथा ऑन) को समझ सकता है। बाइनरी अंकों में लिखे निर्देश या साफ्टवेयर प्रोग्राम को मशीन भाषा (Machine Language) कहा जाता है। कम्प्यूटर मशीन भाषा में लिखे प्रोग्राम को समझ कर क्रियान्वित (run) कर सकता है।

परंतु मशीन भाषा में प्रोग्राम या साफ्टवेयर तैयार करना कठिन काम होता है। साथ ही, प्रत्येक कम्प्यूटर प्रोसेसर की अपनी एक अलग मशीन भाषा होती है जो प्रोसेसर बनाने वाली कम्पनी पर निर्भर करती है। इससे बचने के लिए साफ्टवेयर प्रोग्राम को उच्च स्तरीय भाषा में तैयार किया जाता है तथा इसे लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर द्वारा मशीन भाषा में बदला जाता है। लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर को लैंग्वेज प्रोसेसर (Language Processor) भी कहते हैं।

उच्च स्तरीय भाषा (High Level Language) आम बोलचाल द्ध की भाषा के करीब होती है। अतः इस भाषा में प्रोग्राम तैयार करना म अपेक्षाकृत आसान होता है। साथ ही उच्च स्तरीय भाषा प्रोसेसर की ग कम्पनी तथा उसके मॉडल पर निर्भर नहीं करती। उच्च स्तरीय भाषा में तैयार प्रोग्राम को लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर द्वारा मशीन भाषा में परिवर्तित कर किसी भी कम्प्यूटर पर चलाया जा सकता है।

उच्च स्तरीय भाषा में तैयार किया गया प्रोग्राम सोर्स प्रोग्राम (Source Program) या सोर्स कोड कहलाता है। जबकि ट्रांसलेटर साफ्टवेयर द्वारा मशीन भाषा में परिवर्तित प्रोग्राम आब्जेक्ट प्रोग्राम (Object Program) या मशीन कोड कहलाता है। सामान्यतः आपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर निम्न स्तरीय भाषा (LLL Low Level Language) । में लिखा जाता है जबकि अप्लिकेशन या यूटिलिटी साफ्टवेयर ag उच्च स्तरीय भाषा (HLL) में तैयार किया जाता है।

लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर तीन प्रकार के होते हैं—

 (i) असेम्बलर (Assembler)

 (ii) कम्पाइलर (Compiler)

 (iii) इंटरप्रेटर (Interpreter)

असेम्बलर (Assembler): यह एक बेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर प्रोग्राम है जो असेम्बली या निम्न स्तरीय भाषा में लिखे होत प्रोग्राम को मशीन भाषा में परिवर्तित करता है। असेम्बलर साफ्टवेयर कम्प्यूटर निर्माता कम्पनियों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है तथा हार्डवेयर या प्रोसेसर के प्रकार पर निर्भर करता है। अतः प्रत्येक प्रोसेसर का असेम्बलर प्रोग्राम अलग-अलग सकता है।

असेम्बलर सॉफ्टवेयर असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम के सोर्स कोड को मशीन या ऑब्जेक्ट कोड में बदलता है। यह मशीन कोड को एक स्थान पर इकड्डा (Assemble) करता है तथा उसे कम्प्यूटर मेमोरी में स्थापित कर क्रियान्वयन (run) के लिए तैयार करता है।

कम्पाइलर (Compiler): यह एक लैंग्वेज ट्रांसलेटर प साफ्टवेयर है जो उच्च स्तरीय भाषा (HLL) में तैयार किए गये प्रोग्राम को मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है। कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक ही बार में अनुवादित करता है तथा प्रोग्राम के सिंटेक्स (Syntax) की सभी गलतियों को उनके लाइन क्रम में एक साथ सूचित करता है। जब सभी गलतियां दूर हो जाती हैं तो प्रोग्राम संपादित हो जाता है। तथा मेमोरी में सोर्स प्रोग्राम (Source Program) की कोई आवश्यकता नहीं होती।

प्रत्येक उच्च स्तरीय भाषा के लिए अलग कम्पाइलर साफ्टवेयर होता है। कम्पाइलर उच्च स्तरीय भाषा के प्रत्येक निर्देश को मशीन भाषा निर्देश में संकलित (Compile) करता है। कम्पाइलर पूरे सोर्स प्रोग्राम या सोर्स कोड को ऑब्जेक्ट प्रोग्राम/कोड में बदलकर उसे मेमोरी में स्टोर करता है, परंतु उसे क्रियान्वित (rum) नहीं करता। इसके पश्चात, प्रोग्राम को ऑब्जेक्ट कोड द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। इस तरह, कम्पाइलर Executable Program तैयार करता है। एक बार कम्पाइल हो जाने के बाद प्रोग्राम को क्रियान्वित करने के लिए कम्पाइलर साफ्टवेयर की जरूरत नहीं होती।

इंटरप्रेटर (Interpreter) : कम्पाइलर की तरह इंटरप्रेटर भी एक लैंग्वेज ट्रांसलेटर साफ्टवेयर है। इंटरप्रेटर साफ्टवेयर उच्च स्तरीय भाषा में तैयार किए गए प्रोग्राम को मशीनी भाषा में परिवर्तित कर उसे क्रियान्वित करता है। इंटरप्रेटर उच्च स्तरीय भाषा में तैयार किए गए प्रोग्राम के प्रत्येक लाइन को एक-एक कर (Line by line) मशीन भाषा में परिवर्तित करता है। यह प्रोग्राम के एक लाइन का मशीनी भाषा में अनुवाद कर लेने के पश्चात उसे क्रियान्वित (run या execute) भी करता है।

यदि इस लाइन के क्रियान्वयन में कोई गलती हो तो उसे उसी समय इंगित करता है तथा संशोधन के बाद ही अगली लाइन को मशीन भाषा में परिवर्तित करता है। स्पष्टतः, इंटरप्रेटर का आउटपुट ऑब्जेक्ट प्रोग्राम न होकर साफ्टवेयर क्रियान्वयन का परिणाम होता है। अतः प्रत्येक बार साफ्टवेयर को क्रियान्वयन के दौरान इंटरप्रेटर से होकर गुजरना पड़ता है। इस कारण, इंटरप्रेटर साफ्टवेयर का मेमोरी में बना रहना आवश्यक होता है। कम्पाइलर की अपेक्षा इंटरप्रेटर साफ्टवेयर तैयार करना आसान होता है। चूंकि इंटरप्रेटर एक-एक लाइन कर प्रोग्राम की गलतियों को करता है इंटरप्रेटर द्वारा प्रोग्राम में सुधार करना आसान है।

रोचक तथ्य

यूनिक्स (UNIX) ‘सी’ (C) भाषा में लिखा जानेवाला पहला ‘आपरेटिंग सिस्टम है। इससे किसी नए मशीन में इसका प्रयोग आसान हुआ।

कम्पाइलर (Compiler) और इंटरप्रेटर (Interpreter) में अंतर वस्तुतः दाना का कार्य उच्च स्तरीय भाष (High Level Language) की मशीन भाषा में बदलना है। पर कई  पद्धति के आधार पर दोनों में कुछ अंतर भी है—

कम्पाइलर

  •  (i) पूरे प्रोग्राम को एक साथ परिवर्तित करता है।
  • (ii) पूरे प्रोग्राम को मशीन भाषा में परिवर्तित कर सभी गलतियां एक साथ बताता है।
  • (iii) प्रोग्राम को मशीन भाषा में परिवर्तित करता है, पर उसे क्रियान्वित नहीं करता।
  • (iv) कम्पाइलर का आउटपुट मशीन भाषा का ऑब्जेक्ट कोड होता है।
  • (v) एक बार अनुवाद हो जाने के बाद प्रोग्राम को क्रियान्वित करने के लिए कम्पाइलर सॉफ्टवेयर की की जरूरत नहीं होती।

इंटरप्रेटर

  •  (i) प्रोग्राम को एक-एक लाइन कर अनुवादित करता है।
  • (ii) एक लाइन को मशीन भाषा में परिवर्तित कर उसकी गलतियां बताता है तथा उस दोष के दूर हो जाने पर ही आगे बढ़ता है।
  • (iii) प्रोग्राम को मशीन भाषा में परिवर्तित कर उसे क्रियान्वित भी करता है।
  • (iv) इंटरप्रेटर का आउटपुट साफ्टवेयर क्रियान्वयन का परिणाम होता है।
  • (v) प्रोग्राम को क्रियान्वित करने के लिए साफ्टवेयर को प्रत्येक बार इंटरप्रेटर से होकर गुजरना पड़ता है। अतः हर बार इंटरप्रेटर साफ्टवेयर की जरूरत पड़ती है।
  • (vi) अशुद्धियों को हटाने मैं धीमा होता है।
  • (vii) सम्पादन में कम समय लेता है।

कुछ लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम (Some Popular Operating System)

 (vi) अशुद्धियों को हटाने में तीव्र होता है।

(vii) सम्पादन में अधिक समय लेता है।

एमएसडॉस (MS-DOS-Microsoft Disk Operating System) : यह 1981 में माइक्रोसाफ्ट व आईबीएम द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया एकल आपरेटिंग सिस्टम (Single User Operating System हैं यह कमांड प्रोम्प्ट पर आधारित आपरेटिंग सिस्टम है। चूंकि इसमें कमोद को कम्प्यूटर पर टाइप अमेटिंग करना पड़ता है, अतः को कम तथा उसका Bell La (Syntax) याद रखना पड़ता है। इसके मे नाम, प्लेश (Slash) तथा खुले हुए डायरेक्टरी का नाम रहता है। एमएस डास एक 16 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम है।

तथा संचा डाटा की “वर्तमान में इस आपरेटिंग सिस्टम का प्रचलन कम हो गया है। भाषा) में क्योंकि इसके कमाण्ड को याद रखना पड़ता है तथा इसमें चित्र और प्रयोग आफ नहीं बनाये जा सकते

माइक्रोसाफ्ट विण्डोज (Microsoft Windows) : माइक्रोसाफ्ट कम्पनी ने एमएस डॉस की कमियों को दूर करने लिए 1990 में विण्डोज 3.0 जारी किया। बाद में इसके कुछ है। यह संशोधित संस्करण समय-समय पर जारी किए गए। जैसे- Win- सिस्टम dows-95, Windows 98, Windows ME (Millennium), Windows-XP, Windows-Vista, Windows-7. Windows-10 आदि।

विण्डोज अपरेटिंग सिस्टम की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं-

 (i) यह Graphical user Interface (GUI) पर आधारित है, इसे Learn और इस पर कार्य करना आसान है।

 (ii) इसमें चित्र, ग्राफ तथा अक्षर के कार्य किये जा सकते हैं।

 (iii) विण्डोज पर आधारित सभी प्रोग्राम की कार्य पद्धति आप लगभग समान होती है। इससे एक प्रोग्राम का ज्ञान दूसरे प्रोग्राम में भी नाम उपयोगी होता है।

 (iv) यह मल्टी टास्किंग एकल (Multi-Tasking Single User) आपरेटिंग सिस्टम है। इसमें एक साथ कई कार्यक्रमों को चलाया और उस पर कार्य किया जा सकता है।

 (v) यह एक Object Oriented सॉफ्टवेयर है।

माइक्रोसाफ्ट विण्डोज एनटी (Microsoft Windows NT) : यह कम्प्यूटर नेटवर्क में प्रयोग के लिए बनाया गया बहुउपयोगकर्ता (Multiuser), मल्टी प्रोसेसिंग तथा टाइम शेयरिंग आपरेटिंग सिस्टम है। इस तरह के आपरेटिंग सिस्टम को नेटवर्क आपरेटिंग सिस्टम कहा जाता है। यह विण्डोज की तरह ग्राफिकल यूजर इंटरफेस का प्रयोग करता है, पर इसमें नेटवर्क, संचार तथा डाटा सुरक्षा की अनेक विशेषताएं पायी जाती हैं।

यूनिक्स (UNIX) यह एक मल्टीजर टाइम शेयरिंग आपोटिंग सॉफ्टवेयर है। इसका 1970 में बेल लेबोरेटरीज (Bell Laboratories) के नाम तथा टेनिस वी (Ken Thompson and Deanis Ritchic) द्वारा किया गया। यह नेटवर्क संचार के लिए बनाया गया पहला सपाट तथा की सुरक्षा इसकी विशेषता रही है। हाई लेवल लैंग्वेज (C) भाषा) में लिखा गया पहला ऑपरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर है। इसका प्रयोग मुख्यत सर्वर के लिए किया जाता है।

लिनक्स (LINUX): लिन्क्स आपरेटिंग सिस्टम पर्सनल कम्प्यूटर के लिए बनाया गया मल्टीयूजर (Multi user) मल्टीटास्किंग (Multi-Tasking) तथा मल्टी प्रोसेसिंग (Multi-Processing) साफ्टवेयर है। यह मुफ्त में उपलब्ध ओपेन मोर्स (Open Source) आपरेटिंग सिस्टम है जिसका विकास नेटवर्क के प्रयोग के लिए किया गया है।

लिनक्स (Linux) आपरेटिंग सिस्टम का विकास लिनस टोरवाल्ड्स (Linus Torvalds) द्वारा 1992 में किया गया। लिनक्स (Linux) आपरेटिंग सॉफ्टवेयर का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा। यह मुफ्त में उपलब्ध एक ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर है, हालांकि इसका ट्रेडमार्क अभी भी इसके विकासकर्ता लिनस टोरवाल्ड्स के पास है। लिनक्स का सोर्स कोड सबके लिए खुला है जिसमें किसी भी प्रोग्रामर द्वारा सुधार किया जा सकता है। लिनक्स एक 32 बिट आपरेटिंग सिस्टम है। लिनक्स का पहचान चिह्न (Mascot) टक्स नामक पेंगुइन (Tux the penguin) है।

क्या आप जानते हैं?

लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम की लोकप्रियता को देखते हुए सन 2000 में कम्प्यूटर निर्माण की कुछ शीर्ष संस्थाओं ने जीनोम (GNOME-GNU Network Object Model Environment) फाउंडेशन की स्थापना की जो free व Open Source software के विकास में सहयोग देता है।

एंड्रायड आपरेटिंग सिस्टम (Android Operating System) : एंड्रायड (Android) टच स्क्रीन मोबाइल फोन जैसे- स्मार्टफोन, टैबलेट आदि के लिए Google कम्पनी द्वारा विकसित आपरेटिंग सिस्टम है। इसमें Graphical User Interface का उपयोग किया गया है। इसका सोर्स कोड Linux तथा अन्य ओपन सोर्स साफ्टवेयर पर आधारित है। WhatsApp Messenger, Google play, Google Search तथा Gmail आदि एंड्रायड आपरेटिंग सिस्टम के भाग हैं। Google कम्पनी ने कुछ अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर Open Handset Alliance बनाया जो ड्राफ्टवेयर के विकास में भूमिका निभाता है।

रोचक तथ्य

Android Operating System के संस्करणों के नाम गीता भोजन (Deserts) के नाम पर रखे गए हैं। जैसे- Cupcake Belair, Kitkat, Oreo आदि

अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)

जो किसी विशिष्ट कार्य के लिए तैयार किये जाते हैं। संस्थान, व्यक्ति या कार्य को देखकर आवश्यकतानुसार इस सॉफ्टवेयर का विकास किया जाता है। यह सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा उपयोगकर्ता के बीच समन्वय स्थापित करता है। अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर का विकास किसी विशेष आपरेटिंग सिस्टम को ध्यान में रखकर किया जाता है। अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर आपरेटिंग सिस्टम द्वारा तैयार किए गए पृष्ठभूमि पर ही कार्य कर सकता है।

उपयोगिता के आधार पर अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर को दो भागों में बांटा जाता है–

 (a) विशेषीकृत अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Customized Application Software) यह उपयोगकर्ता की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। किसी और के लिए इसकी उपयोगिता नहीं होती है। उदाहरण- Train Reservation के लिए तैयार Software वायुयान नियंत्रण के लिए तैयार Software, Weather analysis के लिए तैयार Software आदि।

(b) सामान्य अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (General Application Software) हालांकि इसे विशेष आवश्यकताओं के लिए बनाया जाता है, पर अनेक उपयोगकर्ता इससे लाभ उठा सकते हैं। माइक्रोसाफ्ट ऑफिस (MS Office), वेब ब्राउसर, मीडिया प्लेयर CAD/CAM आदि सामान्य अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर के उदाहरण है।

सामान्य अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर के कुछ उदाहरण हैं-

 (i) वर्ड प्रोसेसिंग साफ्टवेयर (Word Processing Software) : यह साफ्टवेयर कम्प्यूटर द्वारा टेक्स्ट दस्तावेज (पत्र, रिपोर्ट, पुस्तकें आदि ) तैयार करने (Create), उनमें संशोधन करने (edit) का कार्य करते हैं. यह साफ्टवेयर कम्प्यूटर को टाइपराइटर के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने के अलावा कुछ अन्य सुविधाएं भी प्रदान करता है। यह प्रोमिंग साफ्टवेयर में गलतियों में सुधार करना आसान होता है। टेस्टोस्टल रूप में स्टोर किया जाता है तथा इसी रूप में नेटवर्क पर स्थानान्तरित भी किया जा सकता है।

 (ii) स्प्रेड शीट साफ्टवेयर (Spreadsheet Software) : यह मुख्यतः गणितीय (Numerical) तथा सांख्यिकीय (Statistical) डाटा को टेबल अर्थात से और कालम (Rows and Columns) के रूप में वर्गीकृत और विश्लेषित करता है। इसमें ग्राफ और चार्ट बनाने की सुविधा भी रहती है। इसका प्रयोग मुख्यतः बैंकों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में लेजर (Ledger) बनाने में किया जाता है।

क्या आप जानते हैं ?

माइक्रोसाफ्ट ऑफिस (Microsoft Office या MS Office) विण्डोज आपरेटिंग सिस्टम (Windows OS) पर आधारित एक पैकेज अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर है जो कार्यालय तथा सामान्य व्यक्तिगत कार्यों के लिए तैयार किया गया है। एमएस ऑफिस साफ्टवेयर पैकेज में एमएस वर्ड (MS. Word), एमएस एक्सेल (MS Excel). एमएस पॉवर प्वाइंट (MS-Power Point), एमएस एक्सेस (MS-Access) तथा एमएस इंटरनेट एक्सप्लोरर (MS- Internet Explorer) साफ्टवेयर शामिल होता है। इसका पहला संस्करण वर्ष 1990 में जारी किया गया था।

(iii) डाटा बेस साफ्टवेयर (Data Base Software) : इसका प्रयोग data को store करने, उसमें Correction तथा उसका वर्गीकरण करने के लिए किया जाता है।

(iv) प्रेजेंटेशन साफ्टवेयर (Presentation Software) : इस सॉफ्टवेयर द्वारा सम्मेलन, बैठक, गोष्ठी आदि में सूचनाओं का प्रस्तुतिकरण किया जाता है।

(v) एकाउंटिंग पैकेज (Accounting Package) इसके द्वारा विभिन्न वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting), व्यापारिक लेन-देन तथा सामान प्रबंधन को सरल बनाया जाता है। टैली (Tally) भारत में बना एक लोकप्रिय एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर हैं।

(vi) डॅस्कटॉप पब्लिशिंग (DTP-Desk Top Publishing) कम्प्यूटर और उसके सहयोगी उपकरण र किया जाता है। डेस्कटॉप (DP) का टेक्स्ट (Text) दादा को कम्प्यूटर में गुट पर उसे और किया जा सकता है। लोकि प्रयोग द्वारा -कपट पब्लिशर (MS Publisher) Maker), (Corel Draw),  ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर (Graphics] Software) f इसने कम्प्यूटर द्वारा ग्राफ, चित्र और रेखाचित्र आदि का निर्माण, धन तथा प्रिंट किया जा सकता है। Adobe Photoshop एक लोकप्रिय ग्राफिक्स साफ्टवेयर है।

 (viii) कैड साफ्टवेयर (CAD-Computer Aided Design Software) इसमें कम्प्यूटर द्वारा इंजीनियरिंग और वैज्ञानिक स्टोर डिजाइन तैयार करने, नक्शों के वि विमीय (3D Dimensional) दिन एक तैयार करने, उसमें संशोधन करने तथा निर्माण की प्रक्रिया को प्रवचन सने का कार्य किया जाता है। Auto CAD तथा Autodesk कैंड सॉफ्टवेयर के उदाहरण है।

यूटिलिटी साफ्टवेयर (Utility Software)

यह कम्प्यूटर के कार्य को सरल बनाने, उसे अशुद्धियों से दूर रखने तथा सिस्टम के विभिन्न सुरक्षा कार्यों के लिए बनाया गया साफ्टवेयर है। इसका उपयोग कई अप्लिकेशन सॉफ्टवेयर में किया जा सकता है। यूटिलिटी साफ्टवेयर कम्प्यूटर की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है। यूटिलिटी साफ्टवेयर के कुछ उदाहरण हैं—

(i) डिस्क फॉरमैटिंग (Disk Formatting) इसके द्वारा नये मेमोरी डिस्क (फ्लापी, हार्ड डिस्क या ऑप्टिकल डिस्क) को केन प्रयोग से पहले आपरेटिंग सिस्टम के अनुकूल बनाया जाता है। इसमें अक स्टोरेज डिवाइस के सभी सेक्टर की जांच की जाती है, खराब सेक्टर का की पहचान की जाती है तथा डिस्क का address table तैयार किया जा जाता है। फॉरमेटिंग द्वारा डिस्क को दो या अधिक भागों में बांटा जा सकता है जिसे Disk Partition कहा जाता है। फारमैटिंग के दौरान डिस्क पर पहले से मौजूद डाटा को मिटाया नहीं जाता।

(ii) डिस्क क्लीन अप (Disk Clean Up) इसके द्वारा मेमोरी डिस्क की अशुद्धियाँ तथा अनावश्यक प्रोग्राम व डाटा हटाकर उसकी क्षमता में वृद्धि की जाती है।

(iii) बैकअप प्रोग्राम (Backup Program) कम्प्यूटर में लगे मेमोरी डिस्क (Online memory disk) के क्षतिग्रस्त हो जाने पर डाटा नष्ट होने का डर बना रहता है। इससे बचने के लिए डाटा को कम्प्यूटर से अलग किसी मेमोरी डिस्क (Offline Memory disk) पर भी संग्रहित रखा जाता है। इसे बैकअप यूटीलिटी प्रोग्राम कहते हैं।

(iv) एंटीवायरस यूटिलिटी (Antivirus Utility) : सही प्रोग्राम के साथ लगा हुआ छोटा प्रोग्राम या अनुदेश जो चलाये जाने पर कम्प्यूटर सिस्टम में कुछ खराबी उत्पन्न करता है, वायरस कहलाता है। इस वायरस को निष्क्रिय करने के लिए तैयार किये गये साफ्टवेयर प्रोग्राम को एंटीवायरस यूटीलिटी प्रोग्राम कहा जाता है।

(v) डिस्क फ्रैगमेंटेशन (Disk Fragmentation) यह एक यूटीलिटी सॉफ्टवेयर है। जब किसी फाइल को डिस्क पर स्टोर किया जाता है तो कम्प्यूटर सबसे पहले प्राप्त होने वाली खाली जगह पर उसे स्टोर कर देता है। इस प्रकार बार-बार उपयोग से डिस्क टुकड़ों में बेट जाता है और इसे पढ़ने की गति धीमी हो जाती है। इसे ठीक करने के लिए डिस्क डी-फैगमेंटेशन (Disk Defragmentation) प्रोग्राम चलाया जाता है जो सभी फाइलों को पुनः व्यवस्थित करता है। इससे डिस्क की गति होती है। यह store किए गए different file के बीच स्थित खाली Space को Manage कर Memory Management को बेहतर बनाता है।

(vi) फाइल मैनेजर (File Manager) एक स्थान पर रखे गए, सूचनाओं तथा डाटा का संग्रह कम्प्यूटर सिस्टम में फाइल कहलाता है। कम्प्यूटर मेमोरी में किसी भी सूचना को फाइल में ही स्टोर किया जा सकता है। एक या अधिक फाइलों को एक स्थान पर एक Folder में स्टोर किया जा सकता है। फाइल तथा फोल्डर के प्रबंधन के लिए निर्मित सॉफ्टवेयर File Manager कहलाता है।

कम्प्यूटर में प्रत्येक फाइल का एक विशेष नाम, आकार (Size), प्रकार (Type) तथा मेमोरी में स्थिति (Location) होता है। प्रत्येक फाइल के साथ उसकी Properties दर्शायी जाती है जिसमें फाइल के निर्माण की तिथि तथा समय (Date and Time), अंतिम बार देखने (access) या अद्यतन बनाने (update) की तिथि तथा समय आदि भी दर्शाया जाता है। फाइल मैनेजर फाइल तथा फोल्डर को view, edit, print, Copy, delete तथा modify करने की सुविधा प्रदान करता है।

आपरेटिंग सिस्टम कोई भी फाइल बनाने से पहले उसे एक विशेष नाम दिए जाने का अनुरोध करता है जिसे File manager कहते हैं। फाइल को मेमोरी में Save किए जाने पर फाइल मैनेजर फाइल के नाम के साथ File Extension स्वतः जोड़ देता है जो फाइल के प्रकार पर निर्भर करता है। सामान्यतः File extension तीन कैरेक्टर का होता है जिसे फाइल के नाम के बाद dot  लगाकर लिखा जाता है। फाइल मैनेजर फाइल तथा फोल्डर को ट्री स्ट्रक्चर (Tree. Structure) के रूप में प्रदर्शित करता है।

(vii) डाटा / फाइल कंप्रेशन यूटिलिटी (Data/File Compression Utility) इस यूटिलिटी प्रोग्राम का उपयोग फाइल के आकार को छोटा करने के लिए किया जाता है ताकि वह मेमोरी में कम जगह ले तथा उसे नेटवर्क पर कम समय में स्थानान्तरित किया जा सके। Compressed फाइल को पुनः खोलने के लिए decompression साफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। JPEG , MP3 तथा MPEG  format Compressed फाइलों के उदाहरण हैं।

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